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अध्ययन के मूलमंत्र || core of study || पढ़ाई में मन लगाने का आसान तरीका

पढ़ाई में मन लगाने का आसान तरीका आप बच्चे किसी चीज को याद नहीं करते हैं बल्कि रटते हैं। जिसका मतलब है किसी चीज को जाने समझे बिना कण्ठस्थ कर लेना। ..

अध्ययन के मूलमंत्र ||पढ़ाई में मन लगाने का आसान तरीक

प बच्चे जितना जल्दी याद करते हैं, उतनी ही जल्दी उसे भूल भी जाते हैं। यानी अगर आप याद करने में उस्ताद हैं तो भूलने में तो महा उस्ताद हैं। भूलना किसी भी चीज में अच्छा नहीं माना जाता खासकर Maths. में अगर भूले, तो फिर जिन्दगी भर झूले। यानी Maths. में फॉर्मूले अगर याद नहीं रहे तो आप आता हुआ सवाल भी नहीं बना सकते हैं। आप बच्चे किसी चीज को याद नहीं करते हैं बल्कि रटते हैं। जिसका मतलब है किसी चीज को जाने समझे बिना कण्ठस्थ कर लेना। जब हम किसी चीज को बार - बार सुनते हैं तो वह बात हमारे दिमाग में बैठ जाती है। यह एक वैज्ञानिक (Scientific) प्रक्रिया है। परन्तु याद करने का मतलब है किसी चीज को अच्छी तरह समझ कर उसे अपने दिमाग में बैठा लेना। जिस तरह कम्प्यूटर में याद करने के लिए 'मेमोरी' होता है उसी तरह से हमारे दिमाग में भी 'मेमोरी' सेल' (याद करने की कोशिका) होता है। जब हम किसी चीज को अच्छी तरह समझ लेते हैं तो हमारे मस्तिष्क (brain) का "मेमोरी सेल' उसे सुरक्षित रख लेता है। जिस तरह से कम्प्यूटर में रिकार्ड किये गये मेमोरी हमेशा के लिए सुरक्षित हो जाता है और बिना उसे 'डिलीट' किये मिटता नहीं, उसी तरह से एक बार जिसे बात को हमारे मस्तिष्क का 'मेमोरी' सेल, सुरक्षित कर लेता है वह कभी मिटता नहीं है। कम्प्यूटर तो मानव निर्मित यंत्र है अतः उसमें 'रिकार्ड और 'डिलीट' दोनों की सुविधा उपलब्ध है परन्तु हमारा दिमाग प्राकृतिक (natural computer) कम्प्यूटर है, जिसमें केवल रिकार्ड करने की सुविधा है, डिलीट करने की नहीं। क्योंकि कम्प्यूटर में तो किसी चीज को आप तुरंत 'सेव' और तुरंत डिलीट, कर सकते , परन्तु क्या आप अभी-अभी याद की हुई चीज को अभी-अभी भूल सकते हैं? अतः इस बात को अच्छी तरह समझ लें कि जो याद हो गया वह कभी भुला नहीं सकता और जो आप भूल गये वह कभी याद था ही नहीं। उदाहरण के लिए आप बच्चे भूलने के पीछे सबसे बड़ा बहाना यह बनाते हैं कि 'सर इसे बहुत दिन पहले याद किये थे इसलिए भूल गये। लेकिन यह गलत तर्क है। उदाहरण के रूप में, क्या आप से जब आपके पिताजी का नाम पूछा जाता है तो क्या कभी आप अपने पिताजी के बदले दादाजी या चाचाजी का नाम लेते हैं ? नहीं ना। याद कीजिए आपने इसे कब याद किया था? इसे तो आप अपने बचपन में ही (मुश्किल से तीन साल की उम्र में) जब बोलना सीखे थे, तभी याद किया था, फिर इसे आप क्यूं नहीं भूले ? जिस चीज को आपने वर्षों पहले याद किया था वह अभी तक नहीं भूले हैं तो यह कैसे हो सकता है कि जिस चीज को आपने कुछ दिन पहले याद किया हो वह आप भूल जाँए। आप इन्हें न भूलने के पीछे भले ही कुछ भी तर्क क्यों न दें, इन सारे महत्त्वहीन तर्कों में सबसे बड़ा तर्क यही है कि आप इसलिए इसे अभी तक नहीं भूल पाये हैं, क्योंकि आप इसे अच्छी तरह समझ (याद) चुके हैं।

अच्छी तरह समझ में आ जाने के बाद कोई भी चीज कभी भुला नहीं सकता, खासकर - गणित और विज्ञान में तो कभी भी नहीं। उदाहरण के लिए आप (a+b)2 = a2 +2ab+b2 या a2+b2+2ab रट लेते हैं। इसलिए कभी आप +2ab-b2 बोल देते हैं तो कभी कुछ और ? लेकिन अगर आप a+b2 एवं (a+b) 2 का मतलब अच्छी तरह समझ लें यानी (a+b)2 = a2 +2ab+b2कैसे होता है, यह जान लें तो आप ऐसी गलती न करेंगे।

अध्ययन के तीन मूल मंत्र है क्या, क्यों और कैसे? जो चीजें आप पढ़ते हैं वह 'क्या' है, इसे अच्छी तरह से समझने के लिए आप खुद से अधिक से अधिक' ‘क्यों’ पूछिए, जैसे ऐसा क्यों कहा जा रहा है, इसे कहने का क्या अर्थ है? यदि ऐसा नहीं कहा जाय तो क्या अर्थ हो सकता है, आदि आप जितने अधिक ‘क्यों' का जबाब ढूंढ लेंगे, आप उस तथ्य (Concept) को उतनी ही अच्छी तरह समझ जाएंगे अगर आपको अपने सारे 'क्यों' का जबाब मिल जाय तो बहुत अच्छी बात है लेकिन अगर किसी 'क्यों' का जबाब न मिले तो उसे अपने शिक्षक या उस विषय के जानकार (expert) से पूछिए। आपके शिक्षक उस 'क्यों' का जो जबाब देंगे, वही है कैसे !

उदाहरण के लिए संख्या पद्धति (Number System) में संख्याओं के बारे में आप पढ़ते हैं तो आप कई तरह की संख्याओं के बारे में पढ़ते हैं। हम यहाँ केवल दो संख्याओं का उदाहरण लेते हैं प्राकृतिक (natural) एवं पूर्ण संख्या (Whole) number) प्राकृतिक संख्या के बारे में आप पढ़ते हैं की गिनती की संख्याओं को प्राकृतिक संख्या कहते हैं (Counting numbers are called natural numbers.) पूर्ण संख्याओं के बारे में आप पढ़ते हैं कि प्राकृतिक संख्याओं के परिवार में 0 को शामिल कर देने से संख्याओं का जो नया परिवार बनता है, उन्हें पूर्ण संख्या कहते (When we include Zero in the family of natural numbers, the family of numbers is called Whole number.) ये तो इन संख्याओं की परिभाषा (definition) है जो आपने किताब से पढ़कर या शिक्षक से सुनकर रट लिया। इसलिए आप कभी प्राकृतिक संख्या के बदले पूर्ण संख्या की परिभाषा लिख देते हैं तो कभी पूर्ण के बदले पूर्णांक का, लेकिन अगर आप यह समझ लें कि प्राकृतिक संख्या को प्राकृतिक संख्या एवं पूर्ण संख्या को पूर्ण संख्या क्यों कहते हैं? यानी इनको ऐसा नाम क्यों दिया गया है (नाम देने के पीछे कुछ न कुछ कारण होता है)? हम प्राकृतिक संख्या को पूर्ण संख्या क्यों नहीं कह सकते? तो आप ऐसी गलती : कभी नहीं करेंगे प्राकृतिक संख्या (natural number) की परिभाषा तो हर पुस्तक में मिल जाएगी लेकिन प्राकृतिक संख्या को प्राकृतिक संख्या क्यों कहते हैं इसकी जानकारी शायद ही किसी किताब में मिले। मैंने यहाँ इन दोनों संखाओं से सम्बन्धित जो भी प्रश्न किये हैं उनका जबाब एक अच्छा गणितज्ञ (mathematician) ही दे सकता है। आइए, हम इसे जानने की कोशिश करें।

• गणित एक विज्ञान है और विज्ञान में हर क्या, क्यों और कैसे का जबाब होता है। अतः प्राकृतिक संख्या को प्राकृतिक संख्या क्यों कहते हैं, इसके पीछे भी बहुत बड़ा कारण है। आप जानते हैं कि प्रारंभ में हर क्षेत्र में मनुष्य का ज्ञान सीमित था। समय के साथ-साथ मनुष्य का ज्ञान भी बढ़ता गया। जब मनुष्य ने गिनना (count) सीखा तो उसने 1 से गिनना प्रारंभ किया? इस बात की जानकरी आपको विज्ञान से लेकर इतिहास की ढेर सारी किताबों में मिल जाएगी, लेकिन उसने 1 से गिनना कब प्रारंभ किया, कौन ऐसा व्यक्ति था जिसने सबसे पहले 1 से गिनना प्रारंभ किया था यानी इस संख्या पद्धति का अविष्कार किसने किया इन प्रश्नों की जानकारी न तो आपको किसी किताब में मिलेगी और न कोई आम आदमी दे सकता है। हम अपने आसपास जिन चीजों को देखते हैं उनमें से कुछ के बारे में जानते हैं कि इसे किसने बनाया परन्तु हम कुछ चीजें ऐसी भी देखते हैं जिनके बारे में हम यह नहीं जानते कि इसे किसने बनाया। जैसे सूर्य चन्द्रमा, तारे आदि को किसने बनाया इसके बारे में किसी को नहीं पता। जिन चीजों के बारे में हम नहीं जानते कि इसे किसने बनाया उसके बारे में हम कहते हैं कि इसे भगवान यानी प्रकृति ने बनाया है। क्योंकि एक बहुत पुरानी कहावत है जहाँ से विज्ञान खत्म वहीं से भगवान शुरू होता है। यानी जिस प्रश्न का उत्तर विज्ञान के पास नहीं हैं उसका उत्तर भगवान के पास है। उदाहरणस्वरूप जब तक हम चंद्रग्रहण व सूर्यग्रहण के बारे में नहीं जानते थे हम सूर्य व चंद्रमा को भगवान मानते थे लेकिन आज ये हमारे लिए केवल एक आकाशीय पिंड हैं। अतः जिस दिन प्रकृति के सारे रहस्यों की जानकारी विज्ञान के पास हो जाएगी उसी दिन से भगवान भी रहस्य नहीं रह जाएंगें।

भगवान या प्रकृति के द्वारा बनायी गयी चीजों को प्राकृतिक कहा जाता है। चूंकि हमें इस बात की जानकारी नहीं है कि 1 से गिनने वाली संख्या प्रणाली का अविष्कार किसने किया, इसलिए हम इस संख्या प्रणाली (system of numeration ) को प्राकृतिक संख्या कहते हैं। प्राकृतिक संख्या को प्राकृतिक संख्या क्यों कहते हैं, इस बात को तो हम जान चुके, आइए अब हम यह जानें कि पूर्ण संख्याओं को पूर्ण संख्या क्यों कहा जाता

जैसा कि हम पहले चर्चा कर चुके हैं कि प्रारंभ में मनुष्य की जानकारी हर क्षेत्र में सीमित थी। पूर्ण संख्याओं के अविष्कार से पहले गणना प्रणाली (Counting system) में केवल 1 से 9 तक के अंकों का प्रयोग किया जाता था। लोग 9 से आगे गिनना जानते ही न थे, क्योंकि उस समय तक 0 का आविष्कार नहीं हुआ था। जिन लोगों ने 1 से गिनना प्रारंभ किया उन्हें यह पता ही नहीं था कि 1 से छोटी भी कोई संख्या होती है। जब लोगों ने भिन्न (Fraction) यानी परिमेय संख्याओं (rational numbers) और ऋणात्मक (negative) पूर्णांको (integers) के बारे में खोज की तो यह जानकर वे आश्चर्य चकित रह गये कि 1 से बड़ी जितनी संख्याएँ हैं उससे कई गुणा ज्यादा (भिन्न जैसे 1/4, 2/8 इत्यादि एवं ऋणात्मक पूर्णाकों negative integers को मिलाकर) तो 1 से छोटी संख्याएँ हैं। ऋणात्मक पूर्णाकों के बारे में जानकारी लोगों को भिन्न की जानकारी के बाद हुई। क्योंकि ऋणात्मक पूर्णाकों की जानकारी तो सभ्यता के काफी अधिक विकसित हो जाने के बाद हुई जब व्यापार का प्रारंभ हुआ। व्यापार में बकाया के लिए ही ऋणात्मक (negative) चिह्नों का प्रयोग शुरू किया गया परन्तु भिन्न के बारे में लोगों ने ऋणात्मक पूर्णाकों से बहुत पहले उसी समय जान लिया जब उन्होंने खेती करना सीखा। क्योंकि खेती में मिल जुलकर 'वे काम करते थे और फसल को आपस में बाँटते थे। बाँटने के काम के लिए ही भिन्न का अविष्कार हुआ। अत भिन्न में 6/3 (6 बटा 3) में बटा का अर्थ कटोरा का बड़ा भाई बट्टा नहीं हैं बल्कि 6 बटा 3 का अर्थ है 6 बँटा 3 बराबर भाग में जब लोगों को 1 को बाँटने की जरूत पड़ी तो उस समय सबसे पहली बार उन्हें 1 से छोटी संख्या के बारे में

जानकारी भी हुई और इसकी जरूरत भी पड़ी। अतः लोगों ने यह सोचना प्रारंभ किया कि ऐसी कौन सी संख्या मान लिया जाय जिससे छोटी कोई संख्या नहीं हो। जैसा कि आप जानते हैं कि यह काम भारतीय गणितज्ञ आर्यभट ने किया उन्होंने सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, इत्यादि के गोलाकार आकार को ध्यान में रखकर एक गोला (circle) खींच दिया और इसे 0 का नाम दिया जिसका अर्थ है कुछ नहीं। चूँकि 0 के आविष्कार से पहले संख्या प्रणाली (system of numeration) पूर्ण नहीं थी क्योंकि एक से छोटी एवं 9 से बड़ी संख्याओं का कोई प्रावधान नहीं था, इसलिए इस प्रणाली को अपूर्ण माना गया। परन्तु जब 0 का अविष्कार हो गया तो यह अधूरी संख्याकन प्रणाली पूर्ण हो गयी। अतः जब प्राकृतिक संख्या के परिवार में 0 को शामिल कर दिया जाता है तो उसे पूर्ण संख्या कहते हैं। क्या आपको अब भी प्राकृतिक व पूर्ण संख्याओं के बारे में अपने किसी 'क्या, 'क्यों' और 'कैसे' का जबाब जानना बांकी है? क्या अब भी आप प्राकृतिक व पूर्ण संख्याओं के बदले किसी और संख्या की परिभाषा या उदाहरण दे देंगे? इसे बोलते हैं समझना यानी याद करना।

जब भिन्न की चर्चा चली तो हम आपको यह भी बता दें कि भिन्न में नीचे वाले को 'हर' और ऊपर वाले को अंश' कहा जाता है, यह तो आप जानते हैं। लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि नीचे वाले को ही 'हर' व ऊपर वाले को ही 'अंश' क्यों कहा जाता है? हम ऊपर वाले को 'हर' व नीचे वाले को 'अंश' क्यों नहीं कहते? नहीं न। इसलिए कभी आप 'हर' को 'अंश' व अंश को हर कह देते हैं। लेकिन अगर आप यह जान लें कि नीचे वाले को ही हर व ऊपर वाले को ही अंश क्यों कहा जाता है तब तो आप ऐसी गलती नहीं करेंगे न? इसे समझने के लिए आप इस तरह से समझ लें कि हर का अर्थ 'हल' होता है जो नीचे में चलता है। अत: नीचे वाला जब हर हुआ तो ऊपर वाला तो अंश होगा ही। इसे आप इस तरह भी समझ सकते हैं कि अंश का अर्थ होता है हिस्सा जिसका बँटवारा किया जाए उसे ही अंश कहते हैं। आप पहले ही जान चुके हैं कि भिन्न में ऊपर वाले को नीचे व से भाग देकर बाँटा जाता है। अतः ऊपर वाला को अंश कहते हैं। अस का अर्थ अगर आप कंधा भी समझ लें तो भी आप ऊपर वाले को कभी हर नहीं कहेंगे क्योंकि अ अर्थात कंधा हमेशा ऊपर ही होता है

जब आपके मन में उठने वाले अनुत्तरित (unanswered) प्रश्नों की बात चली तो आपको यह भी बता दें कि जोड़ (addition) घटाक (Subtraction) व गुणा (multiplication) में हम सवाल बनाने यानी गणना करने (calculate) के लिए दायीं ओर से क्रिया शुरू करते हैं परंतु भाग में गणना करने का काम बायीं (Left) ओर से शुरू किया जाता है। क्या आप जानते हैं कि भाग (Division) को हम बायीं (Left) ओर से ही क्यों करते हैं? हम इसे भी गुणा (multiplication) घटाव (Subtract) व जोड़ (add) की तरह दायीं (right) ओर से क्यों नहीं कर सकते?

जोड़ (additon), घटाव (subtraction) भाग व गुणा ( multiplication) में मुख्य रूप में दो ही क्रियाएँ होती हैं। एक बढ़ाने की तथा दूसरा घटाने की बढ़ाने के लिए हम जोड़ व गुणा दो तरह की क्रिया करते हैं। आप यह भी जानते हैं कि गुणा की क्रिया जोड़ की क्रिया का ही दूसरा रूप है और इसी पुस्तिका में पूर्व में दी गयी गुणा (multiplication) की परिभाषा (definition ) से भी आप इसे अच्छी तरह समझ चुके हैं। उसी तरह घटाने के लिए घटाव व भाग दो तरह की क्रियाएँ की जाती हैं। जिस तरह से 2 को 9 बार जोड़ने पर 18 होता है। उसी तरह से 2 को 9 से गुणा करने पर 18 होता है। यह आप गुणा में ही समझ चुके हैं।

भाग भी घटाव की क्रिया का ही दूसरा रूप है। जिस तरह से 25 में 4 से भाग देने पर 6 भागफल और 1 शेष होता है। उसी तरह 25 में से 6 बार 4 को घटावें या 4 बार 6 को घटावें, शेष हमेशा 1 होगा। यानी 25 को अगर 1 बनाना चाहते हैं, और हर बार 4 ही घटावें, तो आपको 4 को 6 बार घटाना होगा। आप यह भी जानते हैं कि दार्शमिक प्रणाली (decimal system) में अंकों का स्थानीय मान (place value) बायां से दायां जाने पर घटता है जबकि दायां से बायां जाने पर बढ़ता है। जोड़ एवं गुणा में हम बढ़ाने का काम करते हैं इसलिए इसकी क्रिया दायें से बायें ( बढ़ाने क्रम में) क्रम में करते हैं।

अब सवाल उठता है कि घटाव में जब घटाने का (subract) का काम करते हैं तो इसे भी दायें से बायें क्यों किया जाता है? घटाव में हासिल (carry) लेने का सिस्टम है ओर पैंचा (उधर) वही दे सकता है जिसके पास ज्यादा पावर है। अतः घटाव भी हम दायें से बायें करते हैं। वैसे भी यदि घटाव की क्रिया को धुमाकर देखें तो जोड़ के द्वारा घटाव को बना सकते हैं। जैसे 12-2=4 तो हम ? = 12-4=8 लिखते हैं उसी तरह 8+ ?=12 करते हैं तो ?=12-8=4 लिखते हैं। चूँकि भाग में पंचा (Carry) लेने का सिस्टम नहीं है इसलिए भाग को बायें से दायें करते हैं।

यह तो हुई गणितीय तथ्यों (mathematical fact) को ठीक से समझकर याद रखने की बात, आइए अब हम आपको गणित व विज्ञान के सूत्रों को याद रखने के कुछ तरीके बता रहे हैं। यहाँ हम आपको केवल कुछ उदाहरणों के द्वारा याद रखने का तरीका बताने की कोशिश कर रहे हैं। जिस तरह से इन सूत्रें को याद रखने का फार्मूला मैं यहाँ बता रहा हूँ, आप खुद से भी इस तरह के अधिक से अधिक फर्मूले बनाने की कोशिश करें।



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